Yug Purush

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8TH SEMESTER ! भाग- 133( Eye for An Eye-2)

मेरा पहला टारगेट था नौशाद, क्यूंकी नौशाद को सबक सिखाने के लिए आज से अच्छा मौका मुझे कभी नही मिलता और इस वक़्त सारी सिचुयेशन ,सारी कंडीशन सेम वैसी ही थी जैसा कि मैने सोचा था...यहाँ तक की atmospheric temperature भी...

हॉस्टल  की तरफ जाते वक़्त मैं उसी मेडिकल स्टोर के पास रुका,जहाँ से मैने R. दीपिका के लिए प्रोटेक्शन का पैकेट खरीदा था

"एक पैड देना...."मेडिकल स्टोर वाले लड़के से मैने कहा

"कौन सा दूं, विस्पर या फिर stayfree .... "

विस्पर और स्टायफ्री का नाम जब उस मेडिकल स्टोर वाले लड़के ने लिया तो मुझे अपनी ग़लती का अहसास हुआ लेकिन मैं अपनी ग़लती सुधारता उससे पहले ही वो मेडिकल स्टोर वाला लड़का बोल पड़ा...

"आइ नो..गर्लफ्रेंड के लिए चाहिए ना...भाई एक सजेशन है ,फोन करके पुछ  ले उससे की उसकी पसंद क्या है मतलब की किस ब्रांड का पैड वो यूज़ करती है...."

"क्यों..ब्रांड से फरक पड़ता है क्या..?? दोनों सेम ही ना होगा "

"भाई... मेरी वाली के अलग ही नखरे है... गलत कंपनी का एक बार ले गया था, साली कुतिया ने मुझे ही पहना दिया था गुस्से मे... फिर मस्त पेल के बदला लिया अपुन... "

उसके ऐसा बोलने पर मैने अपनी आँखे छोटी की और उसे कुछ  सेकेंड्स तक घूरता रहा. दिल किया की साले का सर पकड़ कर सारे बाल नोच डालु और अपनी तरह उसे भी टकला बना दूं... दिल किया की सीधे उसका सर पकडू और बाहर खींचकर उसपर लातों की बारिश कर दूं.... लेकिन मैने ऐसा नही किया क्यूंकी मुझे अपनी एनर्जी नौशाद के लिए बचा कर रखनी थी...

"गॉज़ पैड देना बोले तो पट्टी और रूई भी देना...."

जब मैने उससे लड़कियो वाले पैड की जगह दूसरा पैड माँगा तो अबकी बार उसने अपनी आखे छोटी कर ली और कुछ  सेकेंड्स तक मुझे घूरता रहा....

"तू समान देगा या मैं दूसरे दुकान से जाकर ले लूँ..."

"देता हूँ...देता हूँ..."
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उस मेडिकल स्टोर से निकल कर मैं फिर से हॉस्टल  की तरफ बढ़ने लगा और जैसे ही हॉस्टल  के करीब पहुचा तो मैने बाइक एक साइड रोक दी और अरुण का मोबाइल निकाल कर ,अमर सर को कॉल किया...

"मैं आ गया हूँ..."मैने कहा

"कहाँ है..."

"यही एस.पी. के बंगलों से थोड़ी दूर खड़ा हूँ..."

"ठीक है ,तू वही रुक....  मैं आता हूँ..."बोलकर अमर सर ने फोन रख दिया
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वैसे तो मैं जो भी प्लान सोचता हूँ ,किसी को लेकर मैं जो भी स्ट्रेटेजी बनाता हूँ,उसकी खबर शुरुआत मे सिर्फ़ मुझे और मेरे दिमाग़ को होती है... लेकिन इस बार मेरे सस्ट्रेटेजी ,मेरे प्लान की खबर अमर सर को भी थी... क्यूंकी वो इस प्लान मे बहुत इंपॉर्टेंट रोल प्ले कर रहे थे, शायद सिदार सर के जाने का गम  उन्हें भी बहुत था और वो किसी तरह से खुद को रिलैक्स करना चाहते थे, इसलिए एक हॉस्टलर के लिए मार -पीट से बड़ा रिलैक्सशन भला क्या हो सकता था. हम तो स्ट्रेस होने पर मूड फ्रेश करने के लिए किसी भी सिटी वाले को उठा के पेल देते थे.

बड़े भैया के मोबाइल से अक्सर रात को 12 बजे के बाद मैं अमर सर को कॉल करके उनसे नौशाद की खबर लेता रहता था और दो दिन पहले ही उन्होने मुझे बताया था की इन दिनो मिड टर्म चल रहे है और नौशाद मिड टर्म देने ना जाकर पूरे दिन हॉस्टल  मे रहता है... यही सबसे सही मौका था क्यूंकी अकॉरडिंग टू माइ प्लान, मैने नौशाद को हॉस्टल  मे ठोका...ये बात जितने कम लोगो को मालूम चले ये उतना ही मेरे लिए सही था. जब मुझे सड़क के किनारे बाइक खड़े किए हुए कुछ समय बीता, तो मैने सामने की तरफ नज़र डाली और अमर सर मुझे दूर, आते हुए दिख गये...

"क्या हाल है ,अरमान सर...बहुत दिन लगा दिए हॉस्टल  आने मे..."मेरे गले लगते हुए अमर सर ने कहा

"हॉस्पिटल की नर्सेज को मुझसे प्यार हो गया था... साली डिसचार्ज ही नही कर रही थी ..."मुस्कुराते हुए मैने जवाब दिया

"ये ले खून की डिब्बी..."एक छोटी सी डिब्बी मेरे हाथ मे पकड़ाते हुए अमर सर ने कहा"अब जा और छोड़ना मत साले को..  ऐसा मारना की, जहा से निकला है, वही घुस जाए ....बेस्ट ऑफ लक..."

"लक तो मेरे ही हाथ मे है इसलिए यदि बोलना है तो ऑल दा बेस्ट बोलो..."

"ठीक है भाई,जैसी तेरी मर्ज़ी...ऑल द बेस्ट..."

"Thanx..Sir "

"और सुन"

"टेलो..."

"सिर्फ़ आधा घंटा है तेरे पास क्यूंकी उसके बाद सभी लड़के एक -एक करके कॉलेज से हॉस्टल  आना शुरू कर देंगे..."

"डॉन'ट वरी..."बाइक स्टार्ट करके मैने स्कार्फ से अपना चेहरा ढका और बोला" उसका भी मेरे पास जुगाड़ है..."
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कॉलेज मे सीनियर्स के मिड टर्म चल रहे थे ,इसलिए हॉस्टल  लगभग खाली ही था... लेकिन कुछ  लौन्डे ऐसे होते है जिन्हे कॉलेज के मिड टर्म से भी कोई फ़र्क नही पड़ता और वो पूरे दिन हॉस्टल  मे रहकर खटिया तोड़ते रहते है. नौशाद उनमे से एक था. और भी कई लड़के थे जो कॉलेज ना जाकर हॉस्टल  मे ही थे... जिसमे से मेरा दोस्त सौरभ भी एक था और उसे इसकी भी जानकारी थी कि मैं आज यहाँ आने वाला हूँ....
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आज महीनो बाद हॉस्टल  को देखकर सिदार  की याद खुद ब खुद आ गयी लेकिन मैने सिदार  की यादों को अपने जहन से निकाल  फेका क्यूंकी...  ये वक़्त किसी की याद मे दुखी होने का नही था और जब मैं इसमे कामयाब हुआ यानी की खुद से सिदार  की यादों को दूर करने के बाद मैने अपने फेस को स्कार्फ से ढके हुए ही.. अपने रूम की तरफ बढ़ा,जहाँ मेरा खास दोस्त सौरभ, मेरे दूसरे खास दोस्त सुलभ के साथ बैठा तब से मेरा इंतज़ार कर रहा था, जब से मैने उन्हे कॉल करके बताया था की मैं हॉस्टल  आ रहा हूँ..... जब मैं अपने रूम की तरफ जा रहा था तो मुझे हॉस्टल  मे रहने वाले कुछ  लड़को ने देखा लेकिन वो इतने जल्दी मे थे की मुझे पहचान तक नही पाए..मुझे ना पहचान पाने की एक वजह शायद ये भी हो सकती है कि मैने उस वक़्त अपने चेहरे और सर को स्कार्फ से ढका हुआ था....

अपने रूम की तरफ जाते हुए मैने ये सोचा था कि जाकर उन दोनो कामीनो से मैं गले मिलूँगा जिसके बाद दोनो शुरू मे मेरा हाल पुछेन्गे और फिर मेरे सर पर हाथ फिराकर मुझे टकलू-टकलू कहेंगे.... लेकिन अंदर जाकर ना तो मैं उनसे गले मिला और ना ही उनका हाल पुछा....

"साले ,तू मेरे बिस्तर पर लेटकर  हिला रहा है उठ  वहाँ से..." अपने बेड पर सौरभ को लेटा देख मै जोर से चिल्लाया, लेकिन स्कार्फ के कारण मेरी आवाज़ धीमी ही रही

मेरे अचानक रूम के अंदर आने से और आवाज़ करने से सौरभ बौखला गया और जल्दी से अपने पैंट को,जो कि घुटनो तक खिसक गया था,उसे कमर के उपर लाते हुए मेरी तरफ बढ़ा...

"कैसा है अरमान..."अपना एक हाथ मेरी तरफ बढ़ाते हुए सौरभ ने मेरा हाल पुछा....

"पीछे हट और  मुझे छुना मत... साला जिस हाथ से हिलाता है उसी हाथ से हाथ मिलाता है..."अपने बिस्तर की बेडशीट को किनारे से पकड़ कर मैने खींचा और उसकी गठरी बनाकर सौरभ के मुँह पर दे मारा"बेटा इसे धो देना और सुलभ कहा है..."

"वो बाथरूम मे हिला रहा है.. एक मस्त वीडियो देखा हम दोनों ने अभी -अभी.. तू भी देखेगा..??"

"ऐसे तुच्छ काम मै नहीं करता और साले, मैं यहाँ इतने बड़े मिशन पे निकला हूँ और तुम दोनो यहाँ ये सब कर रहे हो.... वीडियो डिलीट मत करना.. बाद मे मै भी देखूंगा.."

सौरभ को मैने बहुत सुनाया और जब सुलभ बाथरूम से रूम आया तो मैने उसे भी बहुत गाली बकी और फिर मुद्दे पे आया...

"नौशाद कहाँ है इस वक़्त...?"उसका नाम लेते ही मेरा खून खौलने लगा ,क्यूंकी अब मुझे वो सब कुछ याद आने लगा था... जिसकी वजह से मैं पिछले 3 महीने से भी अधिक समय तक हॉस्पिटल मे पड़ा  था... उस दिन मुझे जितने भी ज़ख़्म मिले थे वो अब एक-एक करके हरे होते जा रहे थे और उनका दर्द भी. जब मेरे सारे ज़ख़्म एक-एक करके हरे हो रहे थे तो उसी वक़्त सौरभ ने मुझे गोल आकार के लोहे का एक टुकड़ा दिया

"ये कहाँ से लाया ,मैने तो ड्यूस बॉल माँगा था..."

"कॉलेज के वर्कशॉप से चोरी कर लिया और वैसे भी ये ड्यूस बॉल से ज़्यादा हार्ड और भारी है... जिसको भी एक बार पड़ेगा उसका सर फट जाएगा..."

"ठीक है"सौरभ के हाथ से मैने वो लोहे की बॉल ली...बॉल सच मे हद से ज़्यादा भारी थी... बॉल को अपने हाथो मे लेकर मैने सौरभ से रॉड के बारे मे पुछा...

"रॉड का जुगाड़ नही हो पाया ,लेकिन हॉकी स्टिक दरवाजे के पीछे छुपा दी है...."

"चल कोई बात नही..."रूम के बाहर आते हुए मैं बोला"और अपनी आँखे खुली रखना और जैसे ही नौशाद बाथरूम मे घुसे ,काम मे लग जाना..."
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सौरभ और सुलभ को हिदायत देने के बाद मैं उस फ्लोर के बाथरूम की तरफ बढ़ा... नौशाद का रूम बाथरूम के ठीक बगल मे था, इसलिए वहाँ से गुज़रते वक़्त मैने नौशाद के रूम मे नज़र डाली तो देखा कि वो लोग दिन दहाड़े दारू पी रहे थे....यानी की मेरा काम अब और भी आसान होने वाला था...

मैं चुपके से बाथरूम के अंदर गया और दरवाजे की ओट मे खड़ा होकर अपने जेब से खून की डिब्बी निकाली और उसे रूई पर डालकर मैने रूई को अच्छी तरह से खून मे भिगोया और अपने दाहिने हाथ मे खून से सनी रूई को रखकर उसपर पट्टी बाँध दिया.... अब मुझे इंतज़ार था की कब नौशाद बाथरूम मे आए और मैं उसके सर पर लोहे की ये बॉल सीधे फेक कर मारू... लेकिन उसी वक़्त मेरे दिमाग़ मे ख़यालात कौंधा कि...कही इतने भारी वजन के बॉल से नौशाद की मौत ना हो जाए.....??

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